सूक्षम शिक्षण [Suksham Shikshan Kya Hai?] - What is Micro Teaching In Hindi?

सूक्षम शिक्षण [Suksham Shikshan Kya Hai?] - What is Micro Teaching In Hindi?

सूक्ष्म शिक्षण क्या है? | माइक्रो टीचिंग | What is Micro Teaching In Hindi

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सूक्ष्म शिक्षण (Micro-Teaching) : Introduction

An Introduction to MicroTeaching in Hindi | Sukshma shikshan Ka Parichay

सूक्ष्म शिक्षण (माइक्रो टीचिंग) अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आधुनिक विधि है, जिसका कार्य विशिष्ट उद्देश्यों के आधार पर शिक्षक के व्यवहार में परिवर्तन लाना है।

हमारे देश में सूक्ष्म-शिक्षण की उपयोगिता आधुनिक समय में ही शिक्षा शास्त्रियों द्वारा प्रभावशाली शिक्षक (Teacher) तैयार करने के लिए स्वीकार की गई है।

सूक्ष्म शिक्षण का इतिहास (History)

History of Microteaching in Hindi - Suksham Shikshan Ka Itihas

सूक्ष्म शिक्षण (MicroTeaching) का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में 1961 में Acheson (एचीसन) ने किया।

इन्होंने सर्वप्रथम वीडियो टेप (Video Tape) का प्रयोग शिक्षक-प्रशिक्षण कार्य में किया।

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ (Meaning)

Meaning of Micro Teaching in Hindi | Sukshma Shikshan Ka Arth | Microteaching Kya Hai?

सूक्ष्म शिक्षण द्वारा विशेष शिक्षण कौशल (Teaching Skills) का विकास किया जाता है। इन कौशलों (Skills) का प्रयोग वास्तविक कक्षा में किया जाता है । इसमें अध्यापक व्यवहार को महत्व दिया जाता है, इसलिए यह अध्यापक केन्द्रित विधि है ।

सूक्ष्म शिक्षण विशेष अध्यापक व्यवहार का नियंत्रण अभ्यास है।

एलन और रायन के अनुसार यह प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अध्यापकों के लिए नियमित अभ्यास के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही इसका प्रयोग शोध उपकरण के रूप में भी किया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा (Definition)

Suksham shikshan Ki Paribhasha | Definition of Micro Teaching in Hindi

एलन (1968) के अनुसार - "सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना है।"

(Micro-teaching is a scaled down teaching encounter in class size and class time).

बडौदा विश्वविद्यालय के एम०बी० बच (1968) ने सुक्ष्म शिक्षण को इस प्रकार परिभाषित किया है-

"सूक्ष्म-शिक्षण अध्यापक शिक्षा की वह प्रविधि है, जो विद्यार्थियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशलों को वास्तविक विद्यार्थियों के छोटे समूह के साथ, पाँच से दस मिनटों के शिक्षण के नियोजित श्रृंखला के लिए ध्यानपूर्वक तैयार किए गए पाठों में प्रयोग करने का अवसर प्रदान करती है, तथा वीडियो टेप पर परिणामों के निरीक्षण के अवसर प्रदान करती है।

(Microteaching is a teacher-education technique which allows teachers to apply clearly defined teaching skills to carefully prepared lessons in planned series of five to ten minutes encounters with a small group of real students, often with an opportunity to observe the results on videotape).

M.B. Buch एलन और ईव (Allen and Eve, 1968) के अनुसार, "यह वह नियन्त्रित अभ्यास की प्रणाली है, जो विशिष्ट शिक्षण व्यवहार (Teaching Behaviour) पर केन्द्रित होकर शिक्षण अभ्यास को नियंत्रित परिस्थितियों में संभव बनाती है।"

(A system of controlled practice that makes it possible to concentrate on specific teaching behavior and to practice teaching under controlled conditions."

बी०के० पासी (BK Pasi) के अनुसार- "सूक्ष्म-शिक्षण(MicroTeaching) एक प्रशिक्षण विद्या है, जो छात्राध्यापकों से अपेक्षा करती है, कि वे एक संप्रत्यय या अवधारणा, एक विशेष अध्यापन कौशल(Teaching Skills) के द्वारा थोड़े से छात्रों को अल्पावधि में पढ़ाएँ।"

1976 में क्लिपट ने सूक्ष्म शिक्षण को इस प्रकार परिभाषित किया है-"सूक्षम शिक्षण, शिक्षक प्रशिक्षण की वह प्रक्रिया है, जो कि अभ्यास शिक्षण को किसी विशेष कौशल तक सीमित करके तथा शिक्षण समय एवं कक्षा आकार (क्लासरूम साइज) को कम करके शिक्षण परिस्थिति को अधिक सरल एवं नियंत्रित (Controlled) प्रक्रिया में बदल देती है।"

(Micro-teaching is a teacher training procedure which reduces the teaching situation to a simpler or more controlled encounter achieved by limiting the practice teaching to a specific skill and reducing teaching time and class size.)

सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणाएँ (Assumptions of Micro Teaching)

Assumptions of Micro Teaching in Hindi | Suksham Shikshan Ki Avdharnaye | सूक्ष्म शिक्षण की प्रकृति (nature)

सूक्ष्म शिक्षण (Sukshma Shikshan) निम्न अवधारणाओं पर आधारित है:

  1. प्रभावशाली शिक्षण के लिए शिक्षक व्यवहार प्रारूप (Patterns of Teacher Behaviour) आवश्यक होते हैं।
  2. पृष्ठपोषण (Feedback) द्वारा अपेक्षित व्यवहार के प्रारूपों का विकास किया जा सकता है।
  3. यह एक उपचारात्मक योजना (Clinical Programme) है।
  4. यह पूर्ण रूप से व्यक्तिगत प्रशिक्षण कार्यक्रम है।
  5. शिक्षण क्रियाओं का वस्तुनिष्ठ रूप से निरीक्षण किया जाता है, और उनका निदान करके सुधार के लिए सुझाव दिए जाते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र (MicroTeaching Cycle)

Micro Teaching Cycle in Hindi | Suksham Shikshan Chakra

  1. पाठ का नियोजन (Planning)
  2. शिक्षण (Teaching)
  3. प्रतिपुष्टि (Feedback)
  4. पुनः नियोजन (Re-Planning)
  5. पुनः शिक्षण (Re-Teaching)
  6. पुनः प्रतिपुष्टि (Re-Feedback)

सूक्ष्म शिक्षण का स्वरूप (Structure of Micro-Teaching)

Structure of Micro-Teaching in Hindi | Sukshma Shikshan Ka Swaroop Structure | Suksham Shikshan Path Yojna Kaise Banaye | How to Make Micro Lesson Plan in Hindi

इस प्रविधि के अभ्यास में पाठ योजना (Lesson Plan)

  • छोटी,
  • कक्षा में छात्रों की संख्या कम,
  • शिक्षण प्रकरण का छोटा रूप,
  • शिक्षण की अवधि पांच से दस मिनट तक होती है।
  • छात्राध्यापक(Pupil Teacher) के शिक्षण का निरीक्षण किया जाता है। शिक्षण क्रियाओं की जानकारी कराई जाती है, और विकास के लिए सुझाव दिए जाते हैं।
  • इसके उपरांत वही पाठ उसी शिक्षक को दूसरे छोटे समूह को पढ़ाना होता है, फिर वाद-विवाद होता है। इससे पृष्ठपोषण (Feedback) दिया जाता है।
  • इस पर भी यदि शिक्षक आवश्यक समझता है तो फिर से शिक्षण करना पड़ता है ।
  • यह क्रिया चलती रहती है, जिससे छात्र अध्यापक में अपेक्षित शिक्षण कौशल का विकास किया जाता है।

सूक्ष्म शिक्षण के सोपान (Steps of Micro-Teaching)

Steps of Micro-Teaching in Hindi | Suksham Shikshan Ke Sopan Steps | सूक्ष्म शिक्षण के पद

1. विशिष्ट कौशलों का चयन (Selection of Specific Skills):

सबसे पहला Step विशिष्ट कौशलों को परिभाषित (Define) करना होता है। इसमें किसी विशेष कौशल को शिक्षण व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है, तथा उसका ज्ञान छात्राध्यापक को कराया जाता है।

2. कौशल का प्रदर्शन (Demonstration of the Skill):

इस के अंतर्गत सूक्ष्म शिक्षण पाठों के माध्यम से कौशल प्रदर्शन किया जाता है। यह प्रदर्शन प्रशिक्षक द्वारा या वीडियो फिल्म के द्वारा किया जाता है।

3. लघु पाठ योजनाओं का निर्माण (Preparation of Micro Lesson Plans):

इस पद के अंतर्गत छात्र अध्यापक (Student Teacher) किसी विशिष्ट कौशल का प्रयोग करते हुए उससे सम्बन्धित लघु पाठ योजना ( Micro Teaching Lesson Plan) तैयार करता है।

4. छोटे समूह का शिक्षण (Teaching):

इसमें छात्र अध्यापक एक छोटे समूह (Small Group) को पाठ योजना पढ़ाता है, जिसे वीडियो टेप कर लिया जाता है। वीडियो की अनुपस्थिति में कोई अध्यापक छात्र अध्यापक के शिक्षण कार्य का निरीक्षण करता है।

5. पृष्ठपोषण (Feedback):

छात्राध्यापक को पृष्ठपोषण दिया जाता है। यह कार्य पर्यवेक्षक करता है जिसने पाठ योजना (Lesson Plan) का निरीक्षण या विश्लेषण किया हो। पर्यवेक्षक छात्राध्यापक को पुनर्बलन (Reinforcement) प्रदान करता है और उसकी कमियों की ओर भी ध्यान दिलाता है।

6. पुनः नियोजन, पुन: शिक्षण और पुनः मूल्यांकन (Re-Planning, Re-Teaching and Re-Evaluation):

पृष्ठपोषण तथा पर्यवेक्षक के सुझाव छात्राध्यापक को पुनः अगली पाठ योजना को अधिक अच्छे ढंग से प्रस्तुत करने में सहायक होते हैं ।

  • वह पुनः पाठ योजना तैयार करता है।
  • पुनः पढ़ाता है।
  • पुनः पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है व
  • पाठ का पर्यवेक्षण व विश्लेषण किया जाता है।

इस प्रकार बार-बार पाठ को नियोजित करने, बार-बार शिक्षण करने तथा मूल्याकंन करने तथा पृष्ठ पोषण प्रदान करने का चक्र (Cycle) तब तक चलता है, जब तक छात्राध्यापक में अपेक्षित शिक्षण कौशल का विकास नहीं हो जाता।

सूक्ष्म शिक्षण कौशल ( Micro Teaching Skills)

सूक्ष्म शिक्षण के प्रकार | Types of Microteaching Skills in Hindi | Sukshma Shikshan Kaushal Ke Prakar

सूक्ष्म शिक्षण (MicroTeaching) के अभ्यास में शिक्षण कौशल(Teaching Skills) के विकास के मूल्यांकन के लिए विभिन्न मापदंडों का प्रयोग किया जाता है ।

एलन और रायन (1969) ने निम्न चौदह सूक्षम शिक्षण कौशलों की व्याख्या की है|

  1. उद्दीपन विषमता (Stimulus Variation)
  2. भूमिका निर्वाह (Set Induction)
  3. समीपता (Closure)
  4. मौन तथा अशाब्दिक संकेत (Silence and Non-Verbal Cues)
  5. पुनर्बलन का कौशल (Skill of Reinforcement)
  6. प्रश्न पूछने में प्रवाह (Fluency in Questioning)
  7. गहन प्रश्न पूछना (Probing Questions)
  8. उदाहरणों का प्रयोग (Use of Examples)
  9. उद्देश्यों को लिखने का कौशल (Skill of Writing Objectives)
  10. श्यामपट्ट के प्रयोग का कौशल (Skill of Using Black-board)
  11. दृश्य-श्रव्य सामग्री प्रयोग का कौशल (Skill of Using Audio visual Aids)
  12. व्याख्यान का कौशल (Lecturing)
  13. पाठ के अनुसरण का कौशल (Skill of Pacing Lesson)
  14. सम्प्रेषण की पूर्णता (Completeness of Communication)

(B.K. Passi and M.M. Shah) ने कक्षा शिक्षण के निम्नांकित कौशल बताए हैं|

  1. उद्दीपन में परिवर्तन (Stimulus Variation)
  2. सैट इन्डक्शन (Set Induction)
  3. समापन (Closure)
  4. मौन भाव तथा अशाब्दिक संकेत (Silence and Non-Verbal Cues)
  5. छात्र सहयोग का पुनर्बलन (Reinforcement of Student Participation)
  6. प्रश्न पूछने में धारा प्रवाहिता (Fluency in Questioning)
  7. खोजपूर्ण प्रश्न (Probing Questions)
  8. उच्चस्तरीय प्रश्न (High Order Questions)
  9. बहकानेवाले प्रश्न (Divergent Questions)
  10. उदाहरणों का प्रयोग (Use of Examples)
  11. व्याख्यान (Lecturing)
  12. आयोजित आवृत्ति (Planned Repetition)
  13. सम्प्रेषण की पूर्णता (Completeness of Communication)
  14. श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग (Use of Audio-Visual Aids)
  15. कक्षा कक्ष में शिक्षक की सजीवता (Teacher Liveliness in the Class-room)
  16. सामूहिक वाद-विवाद को उत्तम बनाना (Promoting Group Discussion)
  17. शिक्षक व्याख्या (Teacher Explanation)

सूक्ष्म शिक्षण के गुण और दोष (Merits and Demerits of Micro Teaching in Hindi)

सूक्ष्म शिक्षण के गुण (Merits of Micro-Teaching)

Merits of Micro-Teaching in Hindi | Advantages | Suksham Shikshan Ke Gun Aur labh

  1. यह वास्तविक शिक्षण है, जो सामान्य कक्षा शिक्षण (General Classroom Teaching) की जटिलताओं (Complications) को कम करता है।
  2. पाठ के तुरन्त बाद ही छात्र को समुचित प्रतिपुष्टि (Feedback) मिलती है।
  3. निरीक्षक या पर्यवेक्षक द्वारा पाठ का समुचित निरीक्षण किया जाता|
  4. छात्राध्यापक को विशिष्ट शिक्षण कौशल का अभ्यास करने की सुविधा रहती है।
  5. प्रतिपुष्टि तथा समालोचना के आधार पर छात्र अध्यापक को अपने पाठ को पुनर्नियोजित करने, सुधारने और पढ़ाने का तुरन्त अवसर मिलता है।
  6. एक ही प्रशिक्षार्थी के दो या दो से अधिक शिक्षा व्यवहारों की तुलना (Comparison) का अवसर मिलता है।
  7. शिक्षण और शिक्षण की परिस्थितियों पर प्रभावशाली नियंत्रण (Control) रखा जा सकता है।
  8. इसका प्रयोग उपचारात्मक (Remedial) विधि के रूप में किया जा सकता है जिससे छात्र अध्यापक अपनी त्रुटियों को सुधार कर उत्तम शिक्षण अभ्यास कर सके|
  9. अनुभवी शिक्षक (Experienced Teacher) के लिए इससे नई शिक्षण क्षमताएं प्राप्त करने और उनका अभ्यास करने और विद्यमान क्षमताओं में सुधार करने का अवसर मिलता है|

सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro-Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के दोष | Demerits of MicroTeaching in Hindi | Suksham Shikshan Ke Dosh Or Simaye

  • सूक्ष्म कक्षाओं का निर्माण तथा समय तालिका की व्यवस्था करना कठिन है।
  • प्रशिक्षित पर्यवेक्षकों का अभाव रहता है।

सूक्ष्म शिक्षण में किन किन बातो का ध्यान रखा जाना चाहिए ?

सूक्ष्म शिक्षण के प्रयोग में सावधानियाँ (Precautions in using MicroTeaching)

Suksham shikshan me kya kya precautions or savdhaniya baratni Chahiye?

  1. शिक्षण उद्देश्य का विशिष्टीकरण स्पष्ट होना चाहिए।
  2. इससे पहले अनुकरणीय शिक्षण (Simulated Teaching) का अभ्यास करने से इसकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है।
  3. वाद-विवाद द्वारा छात्र की कमजोरियों को सुझाव के रूप में बताया जाना चाहिए।
  4. एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का अभ्यास करवाया जाना चाहिए|
  5. अभ्यास से पूर्व छात्र अध्यापक को पाठ योजना बना लेनी चाहिए, और शिक्षण युक्तियों का निर्धारण कर लेना चाहिए।

पारम्परिक और सूक्ष्म शिक्षण में अन्तर (Comparison between Traditional Teaching and Micro Teaching)

Comparison between Traditional Teaching and Micro-Teaching in Hindi | Difference Between Traditional and MicroTeaching | Traditional VS Micro Teaching| paramparik Shikshan or shuksm Shikshan me antar

Traditional Teaching ( पारम्परिक शिक्षण) Micro Teaching (सूक्ष्म शिक्षण)
पारम्परिक शिक्षण में कक्षा का आकार बहुत बड़ा होता है। सूक्ष्म शिक्षण में 5 से 10 विद्यार्थी ही कक्षा में होते हैं ।
पारम्परिक शिक्षण में उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में नहीं लिखा जाता है। परन्तु सूक्ष्म शिक्षण में ऐसा करना आवश्यक होता है।
पारम्परिक शिक्षण में प्रतिपुष्टि की व्यवस्था नहीं होती है जबकि सूक्ष्म शिक्षण में इसकी व्यवस्था की गई है।
पारम्परिक शिक्षण में शिक्षण अवधि 40-50 मिनट की होती है सूक्ष्म शिक्षण में 5-20 मिनट होती है।
पारम्परिक शिक्षण में शिक्षण प्रक्रिया जटिल होती है सूक्ष्म शिक्षण में यह प्रक्रिया इतनी जटिल नहीं रह जाती।
पारम्परिक शिक्षण में शिक्षक की भूमिका बहुत ही अस्पष्ट होती है जबकि सूक्ष्म शिक्षण में पर्यवेक्षक के रूप में विशिष्ट व पूर्व निर्धारित होती है।

अंत में हम कह सकते हैं, "सूक्ष्म शिक्षण को शिक्षण कौशलों के प्रशिक्षण के लिए या निदानात्मक तथा उपचारात्मक साधन के रूप में प्रयुक्त किया जाना चाहिए। इसे व्यापक शिक्षण का प्रति स्थायी नहीं माना जाना चाहिए । यह एक पूरक उपागम के रूप में है। यह मितव्ययी तथा दक्षतापूर्ण होते हुए भी सब कुछ नहीं है।"

(Micro-teaching is to be used as a diagnostic and remedial measure or the training of teaching skills. It should never be claimed as a substitute for macro-teaching. It is to exist as a supplementary approach. It is economical and efficient but it is not everything."

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