मनोविज्ञान क्या है? - अर्थ,परिभाषा,अवधारणा, विकास,विशेषताएँ, क्षेत्र, उपयोगिता व शाखाएं

मनोविज्ञान क्या है? - अर्थ,परिभाषा,अवधारणा, विकास,विशेषताएँ, क्षेत्र, उपयोगिता व शाखाएं


(Manovigyan Kya Hai?) मनोविज्ञान क्या है? - अर्थ, परिभाषा, प्रकृति , इतिहास ,अवधारणा, विकास, विशेषताएँ, क्षेत्र, उपयोगिता व शाखाएं - Meaning Of Psychology In Hindi

मनोविज्ञान क्या है?  (What Is Psychology In Hindi)

मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning And Concept Of Psychology)

मनोविज्ञान अभी कुछ ही वर्षों से स्वतंत्र विषय के रूप में हमारे सामने आया है।

पूर्व में यह दर्शनशास्त्र की ही एक शाखा माना जाता था।

मनोविज्ञान क्या है? यदि यह प्रश्न आज से कुछ शताब्दियों पूर्व पूछा जाता तो इसका उत्तर कुछ इस प्रकार होता:

"मनोविज्ञान दशर्नशास्त्र की वह शाखा है जिसमें मन और मानसिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।"

मनोविज्ञान विषय का विकास कुछ वर्षों पूर्व ही हुआ और अपने छोटे-से जीवनकाल में ही मनोविज्ञान ने अपने स्वरूप में गुणात्मक तथा विकासात्मक परिवर्तन किए। इन परिवर्तनां के साथ ही साथ मनोविज्ञान की अवधारणा में भी परिवर्तन आए।

वर्तमान समय में मनोविज्ञान का प्रयोग जिस अर्थ से हो रहा है, उसे समझने के लिए विभिन्न कालों में दी गई मनोविज्ञान की परिभाषाओं के क्रमिक विकास को समझना होगा।

कालान्तर में मनोविज्ञान (Psychology) के विषय में व्यक्त यह धारणा भ्रमात्मक सिद्ध हुई और आज मनोविज्ञान एक शुद्ध विज्ञान (Science) माना जाता है। विद्यालयों में इसका अध्ययन एक स्वतंत्र विषय के रूप में किया जाता है।

16वीं शताब्दी तक मनोविज्ञान 'आत्मा का विज्ञान' माना जाता था। आत्मा की खोज और उसके विषय में विचार करना ही मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य था। परन्तु आत्मा का कोई स्थिर स्वरूप नहीं और आकार होने के कारण इस परिभाषा पर विद्वानों में मतभेद था।

अत: विद्वानों ने मनोविज्ञान को 'आत्मा का विज्ञान' न मानकर मस्तिष्क का विज्ञान माना। किन्तु इस मान्यता में भी वह कठिनाई उत्पन्न हुई जो आत्मा के विषय में थी। मनोवैज्ञानिक मानसिक शक्तियों, मस्तिष्क के स्वरूप और उसकी प्रकृति का निर्धारण उचित रूप में न कर सकें। मस्तिष्क का सम्बन्ध विवेक व्यक्तित्व और विचारणा शक्ति से है, जिसका अभाव पागलों तथा सुषुप्त मनुष्यों में पाया जाता है । यदा-कदा इस योग्यता का अभाव पशु जगत में भी मिलता है।

अध्ययन के द्वारा विद्वानों को जब मालूम हुआ कि मानसिक शक्तियाँ अलग-अलग कार्य नहीं करतीं वरन् सम्पूर्ण मस्तिष्क एक साथ कार्य करता है तो विद्वानों ने मनोविज्ञान को 'चेतना का विज्ञान' माना।

इस परिभाषा पर भी विद्वानों में मतभेद रहा।

Manovigyan Kya Hai? वर्तमान शताब्दी में इस प्रश्न का उत्तर विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार से दिया है|

ई. वाटसन के अनुसार, "मनोविज्ञान व्यवहार का शुद्ध विज्ञान है।"

सी. वुडवर्थ के अनुसार, "मनोविज्ञान वातावरण के अनुसार व्यक्ति के कार्यों का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।"

उपर्युक्त परिभाषायें अपूर्ण हैं।

एक श्रेष्ठ परिभाषा (Definition) चार्ल्स ई. स्किनर की है जिसके अनुसार "मनोविज्ञान जीवन की विविध परिस्थितियों के प्रति प्राणी की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है।"

मनोविज्ञान के जनक कौन है?

विलियम वुण्ट (Wilhelm Wundt) जर्मनी के चिकित्सक, दार्शनिक, प्राध्यापक थे जिन्हें आधुनिक मनोविज्ञान का जनक माना जाता है। 

शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)

मनोविज्ञान की परिभाषा (Definition Of Psychology)

मनोविज्ञान की परिभाषा भिन्न भिन्न रूपों में दी गई। काल क्रम में मनोविज्ञान की अवधारणाएँ नीचे प्रस्तुत हैं:

1. आत्मा का विज्ञान (Science Of Soul):

ईसा पूर्व युग में यूनान के महान् दार्शनिकों को इस क्षेत्र में महान् योगदान रहा है। स्वप्नदृष्टा कौन है ? इस प्रश्न के उत्तर में यूनानी दार्शनिकों (Philosophers) ने मनोवैज्ञानिक के प्रारम्भिक स्वरूप को जन्म दिया।

उन्होंने स्वप्न आदि जैसी क्रियाएँ करने वाले को आत्मा (Soul) तथा इस आत्मा का अध्ययन करने वाले विज्ञान (Logos) को आत्मा का विज्ञान (Science Of Soul) कहकर पुकारा।

इस प्रकार मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ यूनानी भाषा के दो शब्दों से मिलकर हुआ|

Psyche + Logos

'Psyche' का अर्थ 'आत्मा' से है तथा 'Logos' का अर्थ है-'विचार करने वाला विज्ञान'

इन दोनों का अर्थ-"आत्मा का विज्ञान" और इसी आधार पर मनोविज्ञान की प्रारम्भिक अवधारणा भी यही थी "मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है।"

प्लेटो (Plato) तथा अरस्तू (Aristotle) ने भी मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान माना था, किन्तु दोनों ने अपने-अपने ढंग से आत्मा के स्वरूप को परिभाषित किया। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि अमूर्त बातों की कोई एक सर्वसम्मत परिभाषा देना सम्भव ही नहीं।

आत्मा की अलग-अलग परिभाषाओं का एक दुष्परिणाम भी हुआ। वह यह कि मनोविज्ञान की परिभाषा के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों की मान्यताओं में मतभेद उपस्थित हो गया। मतभेद इस सीमा तक पहुँच गया कि कुछ ने तो मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान मानने से ही इंकार कर दिया।

2. मन का विज्ञान (Science Of Mind) :

लगभग सोलहवीं शताब्दी तक मनोविज्ञान को आत्मा के विज्ञान के रूप में माना जाता रहा। इस विचारधारा की आलोचना के परिणामस्वरूप दार्शनिकों ने मनोविज्ञान को मनस् का विज्ञान कहकर पुकारा।

इस नवीन विचारधारा का प्रमुख उद्देश्य मस्तिष्क अथवा मनस् का अध्ययन करना था।

मानसिक शक्तियों के आधार पर मस्तिष्क के स्वरूप को निर्धारित करते हुए थॉमस रीड (Thomas Reid, 1710-1796) का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है ।

परन्तु इस विचारधारा के साथ भी वही कठिनाई उत्पन्न हुई जो आत्मा के अध्ययन के साथ हुई थी। मनस् की विचारधारा के समर्थक मनस् को स्वतन्त्र शक्तियों का सही-सही रूप निर्धारण करने में असफल रहे। इस बात के विपरीत यह सिद्ध किया जाने लगा कि मनस् की विभिन्न शक्तियाँ का स्वतन्त्र रूप से कार्य नहीं करना है परन्तु मनस् सम्पूर्ण होकर कार्य करता है।

आत्मा की भाँति मन का भी कोई भौतिक स्वरूप नहीं है तथा जिस वस्तु या बात का कोई भौतिक स्वरूप नहीं, उसे ठीक-ठीक परिभाषित करना भी सम्भव नहीं। अत: मन के मनोविज्ञान की अवधारणा मानने से इंकार किया जाने लगा तथा वे अन्य सर्वमान्य परिभाषा की तलाश में लग गए। 

3. चेतना का विज्ञान (Science Of Consciousness):

मानसिक शक्तियों की विचारधारा के विपरीत मनोविज्ञान को मनस् का विज्ञान कहकर चेतना का विज्ञान कहकर पुकारा गया।

चेतना का विज्ञान कहे जाने का प्रमुख कारण यह प्रस्तुत किया गया कि मनस् समस्त शक्तियों के साथ चैतन्य होकर कार्य करत है।

इस क्षेत्र में अमेरिकी विद्वान् टिचनर (Titchener, 1867-1927) तथा विलियम जेम्स (William James, 1842-1910) का योगदान सराहनीय है इन्होंने मनोविज्ञान को चेतना की अवस्थाओं की संरचना तथा प्रकार्य के रूप में प्रमुख रूप से परिभाषित (Define) करने का प्रयास किया है ।

  • परन्तु चेतना के अध्ययन के समय में भी विद्वान वैज्ञानिक स्वरूप प्रस्तुत करने में असफल रहे और वही कठिनाई रही जो आत्मा तथा मनस् के अध्ययन के सम्बन्ध में थी।
  • चेतना की विचारधारा के सम्बन्ध में गम्भीर मतभेद होने के कारण परिभाषा को अवैज्ञानिक और अपूर्ण सिद्ध कर दिया गया।
  • इसका प्रमुख कारण चेतना को कई रूपों में विभाजित करना था, जिसमें मुख्यतः चेतना, अवचेतन एवं अचेतन की व्याख्या प्रमुख है।

4. व्यवहार का विज्ञान (Science Of Behaviour) :

चेतना को अवैज्ञानिक सिद्ध करने में व्यवहारवादियों का प्रमुख योगदान रहा है।

अमेरिका में व्यवहारवाद के प्रवर्तक वाटसन (Watson 1878-1958) का नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है वाटसन ने अन्तर्दर्शन का बहिष्कार किया और कहा कि जब शारीरिक क्रियाएँ स्पष्ट रूप से दर्शनीय तथा उल्लेखनीय हैं, तब चेतना को कोई स्थान नहीं है।

व्यवहार के रूप में शरीर में विभिन्न मांसपेशीय तथा ग्रन्थीय क्रियाएँ देखने को मिलती हैं।

वाटसन जब शिकागो विश्वविद्यालय के स्नातक छात्र थे, तभी से उनमें पशु-मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने की रुचि जाग्रत हुई। उन्होंने इस विश्वविद्यालय में स्वयं पशु-मनोविज्ञान प्रयोगशाला अपने संरक्षण में स्थापित की। यहीं पर उसके मूलभूत विचार 'व्यवहारवाद' का जन्म हुआ।

वर्तमान शताब्दी में वाटसन का यह योगदान मनोविज्ञान को स्पष्ट रूप से व्यवहार तथा अनुक्रियाओं को अध्ययन के रूप में परिभाषित करता है।

वाटसन का यह कथन है कि मनोविज्ञान को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि मनोविज्ञान की अध्ययन सामग्री का स्वरूप स्पष्ट रूप से बाह्य एवं वस्तुगत हो, जिसमें आत्मवाद (Subjectivisim) से कोई स्थान प्राप्त नहीं है

वाट्सन की इस विचारधारा के अनुयायियों ने भी अपनी व्याख्या में आत्मवाद को कोई स्थान नहीं दिया। यदि मनोविज्ञान को वैज्ञानिक स्वरूप देना है तो उसकी विषय वस्तु को आत्मवाद से परे वस्तुगत रूप में लाना होगा। यदि कोई चूहा किसी भुलभुलैया (Maze) में दौड़ता है, तो इसे बड़ी सरलता से उसकी बाह्य अनुक्रियाओं को देखकर व्यवहार के रूप में विश्लेषण करना है।

चेतना का स्वरूप आन्तरिक है जिसे वैज्ञानिक अध्ययन का विषय नहीं बनाया जा सकता है। इस प्रकार व्यवहारवादी विचारधारा ने मनोविज्ञान के वर्तमान की ओर एक नया मोड़ देकर कीर्तिमान स्थापित किया।

पिछली सभी अवधारणाओं के बदलते क्रम में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि-मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है और प्राणियों के व्यवहार तथा उस व्यवहार को प्रभावित करने वाली सभी बातों का अध्ययन इसके अन्तर्गत आता है।

मनोविज्ञान (Psychology) की अवधारणा के क्रमिक विकास पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक आर. एस. वुडवर्थ  (R. S. Woodworth) ने लिखा है कि "सर्वप्रथम मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा को छोड़ा, फिर मस्तिष्क त्यागा, फिर अपनी चेतना खोई और अब वह एक प्रकार के व्यवहार के ढंग को अपनाए हुए है। 

मनोविज्ञान की परिभाषाएँ (Definitions Of Psychology):

वाटसन : "मनोविज्ञान व्यवहार का शुद्ध विज्ञान हो।" ("Psychology Is The Positive Science Of Behaviour.")
विलियम जेम्स: "मनोविज्ञान, मानसिक जीवन की घटनाओं या संवृत्तियों तथा उनकी दशाओं का विज्ञान है। .....संवृत्तियों अथवा घटनाओं के अन्तर्गत-अनुभूतियाँ, इच्छाएँ, संज्ञान, तर्क, निर्णय क्षमता आदि जैसी ही बातें आती हैं।"
वुडवर्थ : "मनोविज्ञान वातावरण के अनुसार व्यक्ति के कार्यों का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।"
गार्डनर मर्फी: "मनोविज्ञान, वह विज्ञान है जो जीवित व्यक्तियों की वातावरण के प्रति प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है।"

जेम्स ड्रेवर: "मनोविज्ञान एक शुद्ध विज्ञान है जो मनुष्यों और पशुओं के व्यवहार का अध्ययन करता है।"

मैक्डूगल: "मनोविज्ञान आचरण तथा व्यवहार का विधायक विज्ञान है।"

वारेन: "मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो प्राणी तथा वातावरण के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है।"

वुडवर्थ के अनुसार, "मनोविज्ञान व्यक्ति के पर्यावरण के सन्दर्भ में उसके क्रिया-कलापों का वैज्ञानिक अध्ययन है।"

ई. वाटसन के शब्दों में, "मनोविज्ञान व्यवहार का निश्चयात्मक विज्ञान है।"

चौहान के अनुसार, "मनोविज्ञान व्यवहार का मनोविज्ञान है। व्यवहार का अर्थ सजीव प्राणी के वे क्रिया-कलाप हैं जिनका वस्तुनिष्ठ रूप से अवलोकन व माप किया जा सके।"

जेम्स ड्रेवर के शब्दों में, "मनोविज्ञान वह निश्चयात्मक विज्ञान है जो मानव व पशु के उस व्यवहार का अध्ययन करता है जो व्यवहार उस वर्ग के मनोभावों और विचारों की अभिव्यक्ति करता है, जिसे हम मानसिक जगत कहते हैं।" 

मनोविज्ञान की उपर्युक्त परिभाषाओं को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि ये सभी परिभाषाएँ आधुनिक हैं। इनके आधार पर मनोविज्ञान की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं:

  • मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।
  • मनोविज्ञान निश्चयात्मक विज्ञान नहीं बल्कि वह वस्तुपरक विज्ञान है।
  • मनोविज्ञान विकासात्मक विज्ञान है।
  • मनोविज्ञान मानव के मनो-सामाजिक व्यवहार (Socio-Psychological Behaviour) का अध्ययन करता है| 

मनोविज्ञान की प्रकृति (Nature Of Psychology)

Psychology की उपर्युक्त परिभाषाओ एवं विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि मनोविज्ञान वास्तव में एक विज्ञान है।

  • इसके अन्तर्गत तथ्यों का संकलन एवं सत्यापन क्रमबद्ध (Systematic) रूप से किया जाता है।
  • इसके माध्यम से प्राप्त तथ्यों की पुनरावृत्ति एवं जाँच (Revision And Verification) की जा सकती है।
  • सामान्य नियमों का प्रतिपादन किया जाता है।
  • इन सामान्य नियमों के आधार पर अपने आलोच्य विषयों की समस्याओं का पूर्ण रूप से स्पष्टीकरण किया जाता है।

दूसरे शब्दों में, मनोविज्ञान के अध्ययन में वे सभी विशेषतायें (Features) विद्यमान हैं, जो कि एक विज्ञान में हैं। विज्ञान के विकास के साथ ही साथ मनोविज्ञान के अर्थ, विधियों एवं विषय-सामग्री की प्रकृति में भी परिवर्तन हुआ है।

अत: स्पष्ट होता है कि Manovigyan

  1. व्यावहारिक विशिष्टताओं से सम्बन्ध रखता है। इसके अन्तर्गत हँसना-हँसाना, जीवन-संघर्ष और सृजनात्मक प्रक्रियाएँ निहित रहती है।
  2. इसका सम्बन्ध लोगों द्वारा समूह में की गयी प्रक्रियाओं की जटिलताओं से होता है। इसके द्वारा हमें यह भी जानकारी मिलती है कि माँसपेशियाँ, ग्रन्थियाँ और चेतनावस्था, विचारों, भावनाओं और संवेगों से किस प्रकार सम्बन्धित हैं ?
  3. इसके अन्तर्गत हम यह भी अध्ययन करते हैं कि लोग समूह में कैसे व्यवहार करते हैं क्योंकि व्यवहार असम्बन्धित और पृथक् क्रियाएँ नहीं, बल्कि यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। इसके द्वारा ही व्यक्ति एक-दूसरे को समझते हैं।

भारतवर्ष में मनोविज्ञान का विकास (Development Of Psychology In India):

20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत में मनोविज्ञान का विकास प्रारम्भ हुआ। भारत में Psychology का विकास भारतीय विश्वविद्यालयों में विकास से सम्बन्धित है ।

  • सन् 1905 में सर आशुतोष मुकर्जी ने कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की स्नातकोत्तर शिक्षा की व्यवस्था की।
  • कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना डॉ. एन.एन. सेनगुप्त के निर्देशन में स्थापित हुई।
  • दक्षिण भारत में मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना मैसूर विश्वविद्यालय में सन् 1924 में हुई तथा इस प्रयोगशाला के संचालन का कार्य ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन के शिष्य डॉ. एम. वी. गोपाल स्वामी ने किया।
  • कालान्तर में देश के अन्य विश्वविद्यालयों में, जैसे-पटना, लखनऊ, बनारस, भुवनेश्वर, दिल्ली, जयपुर, जोधपुर, चण्डीगढ़ तथा आगरा आदि विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान के अध्ययन की व्यवस्था की गयी तथा प्रयोग के लिए प्रयोगशालाएँ स्थापित की गयीं, जिनमें अब भी निरन्तर शोधकार्य हो रहे हैं।
  • दक्षिण भारत में वी. कुम्पूस्वामी, उत्तर में डॉ. एस. जलोटा तथा उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग में उस समय कार्यरत डॉ. चन्द्रमोहन भाटिया आदि का नाम उल्लेखनीय है ।
  • जलोटा ने शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण तथा भाटिया ने निष्पादन बुद्धि-परीक्षण में मानकीकरण करके उच्च ख्याति अर्जित की।

आधुनिक भारत में मनोविज्ञान के विकास को बड़ा प्रोत्साहन उन संस्थाओं से भी मिला जो इस निमित्त की गयी थीं

  • सन् 1925 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने मनोविज्ञान की एक शाखा कांग्रेस के अन्तर्गत खोली जिसके परिणामस्वरूप निरन्तर कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में मनोवैज्ञानिक विभिन्न विषयों पर अनुसन्धान सम्बन्धी चर्चा करते चले आ रहे हैं।
  • भारत में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं की ओर भी मनोवैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित हुआ है। इसीलिए भारतीय मानसिक स्वास्थ्य संस्था का भी संगठन किया गया। बंगलौर, राँची तथा आगरा के मानसिक अस्पतालों में मनोपचार शास्त्री विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगियों के रोगों के निवारण हेतु अनुसन्धान कार्यों में लीन हैं तथा अनेक रोगी उनके प्रयासों से स्वास्थ्य लाभ कर पाए हैं तथा कर रहे हैं। 

मनोविज्ञान की शाखाएँ (Branches Of Psychology):

हम जानते हैं कि मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है एवं इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। 

मनोविज्ञान के क्षेत्र का निर्धारण सुनिश्चित तथा सुविधाजनक रूप से करने के लिए मनोविज्ञान की सम्पूर्ण विषय-वस्तु को अनेक समूहों में बांट दिया गया है। ये समूह ही मनोविज्ञान की शाखाएँ कहलाते हैं।

मनोविज्ञान की प्रमुख शाखाओं का विवरण इस प्रकार है: 

1. सामान्य मनोविज्ञान: (General Psychology)

सामान्य मनोविज्ञान में मानव के सामान्य व्यवहार का साधारण परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है। 

2. असामान्य मनोविज्ञान: (Abnormal Psychology)

इस शाखा में मानव के असाधारण व असामान्य व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा में मानसिक रोगों से जन्य व्यवहारों, उसके कारणों व उपचारों का विश्लेषण किया जाता है। 

3. समूह मनोविज्ञान: (Group Psychology)

इस शाखा को समाज-मनोविज्ञान के नाम से भी पुकारा जाता है इसमें ये अध्ययन करते हैं कि समाज या समूह में रहकर व्यक्ति का व्यवहार क्या है| 

4. मानव मनोविज्ञान: (Human Psychology)

Psychology की यह शाखा केवल मनुष्यों के व्यवहारों का अध्ययन करती है। पशु-व्यवहारों को यह अपने क्षेत्र से बाहर रखती है। 

5. पशु मनोविज्ञान: (Animal Psychology)

मनोविज्ञान की यह शाखा पशु जगत से सम्बन्धित है और पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन करती है। 

6. व्यक्ति मनोविज्ञान: (Person Psychology)

मनोविज्ञान की यह शाखा जो एक व्यक्ति का विशिष्ट रूप से अध्ययन करती है, व्यक्ति मनोविज्ञान कहलाती है। इसकी प्रमुख विषय-वस्तु व्यक्तिगत विभिन्नताएँ हैं। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण, परिणामों, विशेषतायें, क्षेत्र आदि का अध्ययन इसमें किया जाता है। 

7.बाल मनोविज्ञान: (Child Psychology)

 बालक की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, गामक तथा संवेगात्मक परिस्थितियाँ प्रौढ़ से भिन्न होती है, अत: उसका व्यवहार भी प्रौढ़ व्यक्ति से भिन्न होता है। इसलिए बालक के व्यवहारों का पृथक से अध्ययन किया जाता है और इस शाखा को बाल- मनोविज्ञान कहा जाता है| 

8. प्रौढ़ मनोविज्ञान: (Adult Psychology)

मनोविज्ञान की इस शाखा में प्रौढ़ व्यक्तियों के विभिन्न व्यवहारों का अध्ययन किया गया है। 

9.शुद्ध मनोविज्ञान: (Pure Psychology)

 मनोविज्ञान की यह शाखा मनोविज्ञान के सैद्धान्तिक पक्ष से सम्बन्धित है और मनोविज्ञान के सामान्य सिद्धान्तों, पाठ्य-वस्तु आदि से अवगत कराकर हमारे ज्ञान में वृद्धि करती है। 

10. व्यवहृत मनोविज्ञान: (Applied Psychology)

मनोविज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत उन सिद्धान्तों, नियमों तथा तथ्यों को रखा गया है जिन्हें मानव के जीवन में प्रयोग किया जाता है। शुद्ध मनोविज्ञान सैद्धान्तिक पक्ष है, जबकि व्यवहृत मनोविज्ञान व्यावहारिक पक्ष है। यह मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का जीवन में प्रयोग है। 

11. समाज मनोविज्ञान: (Social Psychology)

समाज की उन्नति तथा विकास के लिए मनोविज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। समाज की मानसिक स्थिति, समाज के प्रति चिन्तन आदि का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान में होता है। 

12. परा मनोविज्ञान: (Para Psychology)

यह मनोविज्ञान की नव-विकसित शाखा है। इस शाखा के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक अतीन्द्रिय (Super-Sensible) और इंद्रियेत्तेर (Extra-Sensory) प्रत्यक्षों का अध्ययन करते हैं। अतीन्द्रिय तथा इंद्रियेत्तर प्रत्यक्ष पूर्व-जन्मों से सम्बन्धित होते हैं। संक्षेप में, परामनोविज्ञान- इन्द्रियेत्तर प्रत्यक्ष तथा मनोगति का अध्ययन करती है। 

13. औद्योगिक मनोविज्ञान: (Industrial Psychology)

उद्योग-धन्धों से सम्बन्धित समस्याओं का जिस शाखा में अध्ययन होता है, वह औद्योगिक मनोविज्ञान है। इसमें मजदूरों के व्यवहारों, मजदूर-समस्या, उत्पादन-व्यय-समस्या, कार्य की दशाएँ और उनका प्रभाव जैसे विषयों पर अध्ययन किया जाता है| 

14. अपराध मनोविज्ञान: (Criminological Psychology)

इस शाखा में अपराधियों के व्यवहारों, उन्हें ठीक करने के उपायों, उनकी अपराध प्रवृत्तियों, उनके कारण, निवारण आदि का अध्ययन किया जाता है। 

15. नैदानिक मनोविज्ञान: (Clinical Psychology)

 मनोविज्ञान की इस शाखा में मानसिक रोगों के कारण, लक्षण, प्रकार, निदान तथा उपचार की विभिन्न विधियों का अध्ययन किया जाता है। आज के युग में इस शाखा का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। 

16. शिक्षा मनोविज्ञान: (Educational Psychology)

जिन व्यवहारों का शिक्षा से सम्बन्ध होता है, उनका शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन होता है। शिक्षा-मनोविज्ञान व्यवहारों का न केवल अध्ययन ही करती है वरन व्यवहारों के परिमार्जन का प्रयास भी करता है|

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